विरेचन therapy

विरेचन

विरेचन थेरेपी क्या है – (virechana therapy kya hai)

विश्व में सर्वाधिक रुप से प्रचलित पंचकर्म की विरेचन थेरेपी से लगभग हर कोई अच्छे से परिचित है। विरेचन थेरेपी से शरीर के दोषों में नियंत्रण पाया जाता है। 

समदोषः समाग्निश्च समधातुमलक्रियः ।

 प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते ॥

अर्थात आयुर्वेद का पंचकर्मा सिद्धांत कहता है कि जिस मनुष्य ने अपने शरीर के तीनों दोषों (वात दोष, पित्त दोष एवं कप दोष) में नियंत्रण पा लिया है। उसकी जीवन भर मल,मूत्र एवं अन्य शारीरिक क्रियाएं समान एवं उचित रुप से चलती रहती है। ऐसा मनुष्य जीवन भर स्वस्थ रहता है तथा उस इंसान की मन,इन्द्रि एवं आत्मा सदैव प्रसन्न रहती है। 

विरेचन का अर्थ “मलादो: निस्सरणं”

अर्थात गुदामार्ग के द्वारा इन दोषों को बाहर निकाल दिया जाता है। विरेचन कर्म से Stomach, Heart और Lungs से प्रभावित विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल दिया जाता है। शरीर से जब विशैल पदार्थ निकल जाते है तो शरीर में रक्त का संचार बहुत अच्छे से होेने लगता है। यदि दोष से पीड़ित व्यक्ति के लिए विरेचन कर्म पंचकर्म की सबसे अच्छी चिकित्सा मानी जाती है। इसका वर्णन चरक संहिता में भी मिलता है। “विरेचनं पितृहरण”,अर्थात विरेचन थेरेपी से पित्त दोष का नाश हो जाता है। 

विरेचन कर्म के अनुसार रोगी को एक निश्चित समयावधि पर इस प्रक्रिया से गुजरना होता है। यह लीवर और आँतों में जमा विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में एक अच्छी भूमिका अदा करता है। 

विरेचन तब किया जाता है जब पित्त दोष बढ़ जाता है जिससे गैस्ट्राइटिस, यकृत रोग आदि रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। अब चूंकि पित्त आंतों में स्थित है इसलिए इसे मलाशय मार्ग के माध्यम से बाहर निकलना ज्यादा आसान है।

यह थेरेपी इस ओर संकेत करती है  कि जहां पित्त दोष बढ़ जाता है या जहाँ पित्त प्रधान होता है वहां ये कफ या वात दोष से संलग्न हो जाती है।

 



विरेचन थेरेपी के नियम – (किन लोगों को विरेचन नहीं कराना चाहिए)

विरेचन थेरेपी के सिद्धांत के अनुसार जिन लोगों को ग्लूकोमा, गाउट, कृमि संक्रमण, त्वचा रोग, स्प्लेनोमेगाली, बवासीर, पुराना बुखार इत्यादि बीमारियाँ है उन्हें यह विरेचन नही करवाना चाहिए। यह थेरेपी बच्चों एवं वृद्धों नही की जाती है। 

 

विरेचन के प्रकार – (virechan therapy ke prakar)

विरेचन मुख्य रुप से दो प्रकार के होते हैं-

स्निग्धा विरेचन: स्निग्धा शब्द का अर्थ है तैलीय। इस प्रक्रिया में हरितकी पाउडर के साथ अरंडी के तेल का उपयोग विरेचक दवा के रूप में किया जाता है। जो कि पित्त दोष को जड़ से समाप्त करता है।

रुक्ष विरेचन: पित्त जब वात दोष से जुड़ा हो तो रुक्ष विरेचन फायदेमंद होता है। रुक्ष विरेचन कर्म में मुख्य रुप से त्रिवृत् पेस्ट का सबसे ज्यादा उपयोग हर्बल औषधियों के रुप में किया जाता है। इस त्रिवृत् पेस्ट का प्रयोग आपको चिकित्सक की सलाह अनुसार ही करना चाहिए।   

विरेचक द्रव्य और गुण –

आयुर्वेद में कुछ महत्व पूर्ण विरेचक द्रव्य के नाम दिये गये है जोकि इस प्रकार से है – 

सर्वश्रेष्ठ विरेचक द्रव्य में से कुछ इस प्रकार से हैं- माशा, त्रिवृत, आंवला वटी, स्नुही-क्षीर, चतुरंगुला, अश्वगंधा, हरित्की, जय फल, सुधा, द्रेवन्ति, तिलवक आदि।



अन्य विरेचक द्रव्य के गुण –

  1. कफ के विषाक्त पदार्थों को पिघलाने के लिए पर्याप्त गर्म होना चाहिए।
  2. विषाक्त पदार्थों को काटने के लिए पर्याप्त तेज होना चाहिए।
  3. बॉडी चैनल में इसका विस्तार अच्छी तरह से होना चाहिए।
  4. पाचन से पूर्व प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए।
  5. यह चिपचिपे स्वभाव वाले विषाक्त पदार्थों को निकालने में सक्षम होनी चाहिए।

 

विरेचन की क्रिया विधि – (virechan ki vidhi)

संपूर्ण विरेचन क्रिया तीन चरण में होती है – 

  1. पूर्वकर्म
  2. प्रधानकर्म
  3. पश्चात कर्म

पूर्वकर्म – पूर्वाकर्मा मुख्य चिकित्सा के लिए शरीर को भलीभांति तैयार करने की प्रक्रिया है। इसमें दो चरण शामिल हैं, जैसे स्नेहन (ऑलिटियन) और स्वेदन (स्टीम थेरेपी)।

केश तेल के साथ पूरे शरीर की मालिश (अभ्यंग) की जाती है। इसके पश्चात दशमूल क्वाथ (काढ़ा) के साथ भाप चिकित्सा भी की जाती है।

प्रधानकर्म – प्रधानकर्म में विरेचन उपचार शामिल है। इस प्रक्रिया में रोगी को एक रात पहले अच्छी नींद लेना जरूरी है। कफ दोष समाप्त होने के बाद विरेचक दवाओं का सेवन किया जाता है। विरेचक दवा की मात्रा एलिमेंट्री ट्रैक्ट या कोशार्थ की प्रकृति के नियम के अनुसार चिकित्सक देते है। 

पश्चात कर्म- इसे संसर्जन कर्म के रूप में भी जाना जाता है। विरेचन के बाद आहार नियम का पालन करना बहुत जरुरी होता है। आहार नियम के अंतर्गत शुरुआत में तरल आहार  दिया जाता है और फिर धीरे-धीरे ठोस पदार्थों में बदल जाता है। रोगी को गुनगुने पानी से स्नान करने की सलाह दी जाती है। अच्छी तरह से पके हुए चावल से तैयार गर्म मांड (Hot starch) व्यक्ति की पाचन शक्ति के अनुसार दिया जाता है। डाइट चार्ट का पालन करना हर मरीज के लिए बहुत ही आवश्यक होता है।

विरेचन थेरेपी से किस तरह के रोगों का उपचार संभव है – (विरेचन से किस तरह के रोगों का इलाज)

विरेचन थेरेपी सबसे अच्छे आयुर्वेदिक उपचारों में से एक है, जो बिना किसी दुष्प्रभाव के स्वास्थ्य समस्याओं को ठीक करने के लिए जाना जाता है।  विरेचन थेरेपी से खांसी, गले का संक्रमण, नींद न आना, मुंह से दुर्गंध आना, ग्रैनो दोष इत्यादि रोगों का उपचार किया जाता है। 

Frequently Asked Questions

Virechan (purgation) is the second therapy of panchakarma. It is one of the most common therapy and is a treatment of choice in diseases caused due to aggravated pitta dosha. The pitta dosha is expelled forcibly through the anal route. It may also be administered in vata-pitta or pitta-kapha doshas where pitta is dominant. The therapy involves following specific dietary regimen to reach the normal diet and complete the therapy.

Virechan is beneficial in diseases occurring due to vitiate pitta.
We shall discuss here some of the important disorders where virechan works significantly.

1) Virechan is beneficial in skin treatment as the skin problems arise due to involvement of pitta and rakta. Under Aasha Ayurveda, skin care treatment in Delhi, significant relief was found in patients with eczema, hyper pigmentation, itching, psoriasis etc. The therapy improves the dushti symptoms of pitta and vata dosha. For any skin related issues one must visit the doctor for ayurvedic skin treatment. Aasha’s ayurvedic treatment for skin in Delhi stands tall amongst the other centres.


2) Virechan and basti are best therapy for weight loss treatment. Obesity is a metabolic disorder and so the therapy improves the metabolism by eliminating the toxins. Virechan is chosen over basti as it is less invasive. It flourishes the good gut microbiome and thus promotes weight loss and well being of the person.


3) Alopecia is an auto immune disorder also called as spot baldness. Pitta is the aggravated dosha here. Hair treatment required is, piita pacifying drugs and therapy. Virechan is the treatment of choice for expelling aggravated pitta dosha. Hence in the case of hair treatment in alopecia medicated purgation therapy reduces the pitta dosha and hence is an excellent therapy for management of alopecia.


Other benefits of virechan are it helps in lowering the cholesterol, improves the liver function, reduces the fat on the liver, chronic head ache, acne, hyperlipidemia, improves the function of the kidney and heart.

Ayurvedic virechan therapy is used to eliminate excess pitta dosha. It is used to eliminate excess pitta dosha with the help of herbal medicines that induces vomiting. Aasha Ayurvedic centre offers the best virechan treatment in Delhi.

“मलादो: निस्सरणं”

Meaning removal of dosha through anus.

The administration of purgative substance for elimination of excess of pitta dosha through the rectal route is called virechan.

“विरेचनं पित्तहरणं” mentioned in Charaka Samhita suggest that the therapy is the best treatment for diseases arising due to aggravated pitta dosha.