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होली में आयुर्वेदिक नुस्खे अपनाकर कैसे रखें अपनी सेहत का ख्याल 

होली इन हिंदी – Holi Festival in Hindi

होली आते ही मन में बिल्कुल रंगबिरंगा हो जाता है। इस साल होलिका दहन 17 मार्च 2022 को होगी और होली 18 मार्च 2022 को मनाई जाएगी। 

होली रंगों के साथ मस्ती करने का एक खास भारतीय उत्सव है। इसमें हम सभी रंगों में भाव-विभोर हो जाते हैं। ऐसे में होली को मानने की तैयारी लोगों ने करने शुरु हो गई होगी। परंतु आज के समय में रंगों में बहुत नुकसान करने वाले कैमिकल आते है। जो हमारी सेहत को खराब कर सकते हैं। इसलिए होली मनाने से पूर्व बिना कैमिलकल वाली गुलाल का चयन करें। 

यदि संभव हो तो कोशिश करें कि प्राकृतिक रंगों के साथ होली खेेंले। जिससे आपको नुकसान की जगह बहुत सारे स्वास्थ्य लाभ भी होगें । और आपकी त्वचा में निखार आयेगा तथा किसी भी प्रकार के कैमिकल इंफेक्शन से बच जायेंगे। 

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आयुर्वेद और होली के बीच क्या संबंध है ? आखिर वसंत में ही क्यों होली का त्यौहार मनाने की प्राचीन परंपरा है ?

(Holi Festival information in hindi) पर चर्चा करते हुए आशा आयुर्वेदा की आयुर्वेदिक विशेषज्ञ डॉ चंचल शर्मा कहती हैं। कि हमारी बॉडी पंच तत्वों (आकाश, जल, भूमि, अग्नि और वायु) के मिश्रण से बनी है। यदि इन तत्वों के बीच किसी भी प्रकार का तालमेल खराब होता है। तो हमें बीमारियां घेर लेती है। इसलिए हमें इन तत्वों का सामान अनुपात बनाकर चलना होगा।

वात पित्त और कफ दोष मानव शरीर का संतुलन बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाते है। यदि इनका औषत खराब हुआ तो हमारी इम्युनिटी कमजोर हो जाती है। और हम रोगों से लड़ने में असमर्थ हो जाते  है। 

होली का त्यौहार (Holi in hindi) वसंत ऋतु में मनाया जाता है। और वसंत ऋतु के साथ गर्मी की शुरुआत होती है। वसंत का आगमन ठंड़ की समाप्ति के साथ होता है। इसलिए मौसम में तापमान और नमी दोनों होते है। जिससे शरीर में ठंड के कारण होने वाला कफ पिघलने लगता है। ऐसे में हम कफ दोष का शिकार हो सकते हैं। और कफ से संबंधित बीमारियां होने की अशंका रहती है। 

होली मनाने के लिए क्या है प्राचीन चिकित्सा आयुर्वेद का मत – Holi festival in hindi

मुख्य रुप से होली के त्यौहार (Holi Festival) मनाने के पीछे का तर्क है। कि इस मौसम में कफ दोष की अधिकता अधिक होती है। जिसे ठीक करने के लिए तीनों दोषों में संतुलित बनाएं रखने के लिए Holi Festival को प्राकृतिक रंगो के साथ मनाते हैं। 

यह प्राकृतिक आयुर्वेदिक औषधियों के गुणों से भरपूर होते है। जो हमारे कफ दोष को नियंत्रित करके त्वचा की रंगत बढ़ाने में अपना सबसे बड़ा योगदान देते है। 

आयुर्वेद के ऋतु चर्या के नियमों के अनुसार वसंत के मौसम में कफ का प्रकोप सबसे ज्यादा होता है। इसलिए होली में प्राकृतिक रंगों के प्रयोग से कफ दोष को संतुलित करके सेहत को बेहतर किया जाता है। वसंत में सबसे ज्यादा आलस होती है। गले और नाक में बलगम की समस्या भी होती है। ऐसे में Holi Festival मनाने से शरीर में चुस्ती-फुर्ती का संचार होता है। 

होली के रंग होंगे सेहत के संग – Holi colors will be with health in hindi

Holi festival in hindi

बिना रंगों के साथ होली खेलने का आप सोच भी नही सकते है। इसलिए प्राचीन काल से Holi को प्राकृतिक रंगों के साथ खेला जाता रहा है। यह प्राकृतिक रंग आयुर्वेदिक जड़ी बुटियों के मिश्रिण से निर्मित कीए जाते थे। इसलिए हमेें आज भी पूरी कोशिश करनी चाहिए । कि होली का त्यौहार प्राकृतिक रंगो के साथ मनाए। 

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होली के प्राकृतिक रंग कैसे बनते है – Natural Holi colors in Hindi

होली के प्राकृतिक रंगों को इस प्रकार तैयार किया जाता है। जैसे हरे रंग की जगह पर नीम और मेंहदी का उपयोग किया जाता है। लाल रंग को कुमकुम और रक्तचंदन से तैयार करते हैं। पीले रंगों को हल्दी पाउंडर से तैयार करते हैं। नीले रंग को गुलमोहर के फूल से बनाते हैं। तथा अन्य रंगो को बेल , गुलाब, गेंदा , गुलदाउदी से निर्मित करते हैं। 

होली के प्राकृतिक रंग से त्वचा में रंगत-  Skin tone with the natural colors of Holi

डॉ चंचल शर्मा कहती है। कि होली का त्यौहार वसंत ऋतु में मनाया जाता है। ऐसे में प्राकृतिक रंग और वसंत ऋतु की डाइट की अहम भूमिका होती है। जो हमारे स्वास्थ्य को बेहतर करते हैं। शीत ऋतु में हमारी त्वचा शुष्क हो जाती है तथा शीत के कारण हमारे पेट की जठराग्नि मंद पड़ जाती है। ऐसे में हम यदि ऋतु चर्या अनुसार डाइट (आहार) का सेवन करते हैं। तो पाचन शक्ति में सुधार होता है। और प्राकृतिक रंगों का उपयोग करने से हमारी त्वचा में रंगत दोबारा लौट आती है। प्राकृतिक रंगों से एक और लाभ मिलता है। कि त्वचा में किसी भी प्रकार का संक्रमण नही होता है। जिससे हम अच्छे तरीके से holi खेल सकते है । 

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होली के दौरान वसंत ऋतु में डाइट का क्या महत्व होता है – Holi Diet in Hindi

यह हर किसी के लिए जानना आवश्यक है। कि जैसे ही एक ऋतु का समापन होता है और दुसरी ऋतु का प्रारंभ होता है। तो ऐसे में हमे अपने आहार में भी परिवर्तन कर लेना चाहिए। क्योंकि ऋतु परिवर्तन के साथ ही शरीर के दोष असंतुलित होने शुरु हो जाते है। जिसको नियंत्रित करने के लिए हम यदि अपने आहार को ऋतु अनुसार लेते है। तो हमारे दोष संतुलित होने लगते है। और हार्मोन में तालमेल बना रहता है। ऐसे में आयुर्वेद के महान आचार्य वागभट्ट जी के नियमों को पालन कर हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर बीमारियों से अपनी रक्षा कर सकते है। यही ऋतु चर्या के मुख्य नियम है। हर हर ऋतु में अलग-अलग होते है। 

वसंतु ऋतु में कैसे होने चाहिए आपकी डाइट – How should be your diet in spring

अक्सर वसंतु के मौसम में हर किसी की पाचन शक्ति में कमजोरी आ जाती है। ऐसे में पाचन तंत्र को मजबूती प्रदान करने वाले आहारों का सेवन करना चाहिए। वसंतु ऋतु में आहार में परिवर्तन करने से आप खुद को स्वस्थ रख सकते हैं। 

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वसंत ऋतु में क्या खाना चाहिए ? – What to Eat in Spring in Hindi

आयुर्वेद के अनुसार खानपान को लेकर बहुत सारे दिशा निर्देश है। जिनका पालन कर आप खुद को फिट रख सकते हैं। 

  1. वसंतु में बेसन का कम सेवन करें। 
  2. मैदा का सेवन बहुत कम करें। 
  3. तेल युक्त खाद्य पदार्थों को डाइट  में जगह न दें। 
  4. मौसमी फलों एवं क्षेत्रीय (एरियावाइस) फलों का चयन प्रमुख से करें। अर्थात वसंत के समय जो भी फल होते है उनको डाइट में शमिल करें। तथा 25 किमी के दायरे में जो फल उगते है। उनको भी आप अपने भोजन का हिस्सा बनाएं। ऐसे आयुर्वेद में नियम बताएं गये है। 
  5. वसंत ऋतु में अधिक खट्टा, अधिक मीठी, अधिक चिकनाई वाले पदार्थ न खाएं। 
  6. आइसक्रीम, कुल्फी, फ्रुट्स रयता जैसे व्यंजनों को खाने से परहेज करें। 
  7. सुबह के नास्ते में मौसमी फल या फिर आयुर्वेदिक चाय (तुलसी, गिलोय, अदरक) ले सकते हैं। 
  8. वसंत ऋतु में भोजन माध्यम (हल्का भोजन) करने की सलाह आयुर्वेद में ही गई है। 
  9. दही, गुड़, चीनी, मक्खन, उड़द की दाल, मसूर की दाल ज्यादा न खायें । और हो सके तो इसका सेवन कम से कम ही करें। 
  10. संक्रमण से बचने के लिए यदि आप पानी को उबाल कर पीते है। तो यह आपको बीमारियों से बचाने में बहुत ही मददगार साबित होगा। 

इस प्रकार की डाइट लेने से महिला एवं पुरुष दोनों में बढ़ने वाले कफ दोष को नियंत्रित किया जाता जा सकता है। ऐसा आयुर्वेद का मत है। खासकर महिलाओं में जब कफ की अधिकता शीत ऋतु में बढ़ जाती है। तो उनमें गुस्सा की भावना उभर कर सामने आने लगती है। यदि आप आयुर्वेदिक डाइट (Ayurvedic Diet)को अपनाते है। तो यह आपके कफ दोष को नियंत्रित कर महिलाओं के गुस्से को कम करने में कारगर होगा।

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