फाइब्रॉइड ट्रीटमेंट: बच्चेदानी की गांठ के लक्षण, कारण आयुर्वेदिक इलाज

फाइब्रॉइड ट्रीटमेंट: बच्चेदानी की गांठ के लक्षण, कारण आयुर्वेदिक इलाज – Fibroid in Hindi

बदलते समय के साथ महिलाओं के स्वास्थ्य समस्याएं भी तेजा से बढ़ रही हैं। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है तो उनकी समस्याएं भी बढ़ती हैं। हार्मोनल बदलाव से अनियमित पीरियड्स की शिकायत, कमजोरी के कारण उनमें थकान और चिड़चिड़ापन होना, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और हाइपरटेंशन की तकलीफ होती है।

खराब जीवनशैली और बदलते खानपानके कारण महिलाओं में पीसीओडी और रसौली (Fibroids) एक आम समस्या बनती जा रहा है। रसौली में ऐसी गांठ होती है जो महिला के गर्भाशय में होता हैं। ऐसा माना जाता है कि 5 में से 1 महिला को बच्चेदानी में रसौली की समस्या हो सकती है। 50 की उम्र में आते आते अधिकतर महिलाओं को बच्चेदानी में गांठ की समस्या हो सकती हैं। इसे यूटेराइन फाइब्रॉयड भी कहा जाता है। बच्चेदानी में रसौली किस कारण हो सकती है, अभी तक इसका कोई सही कारण नहीं मिला है। आज इस आर्टिकल में हम आपको गर्भाशय में फाइब्रॉइड या फाइब्रॉइड ट्रीटमेंट के बारे में विस्तार से जानेगे।  

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फाइब्रॉइड के कारण और लक्षण- Causes and Symptoms of Fibroids in Hindi

प्रजनन उम्र में अक्‍सर महिलाओं के गर्भाशय में रसौली (Fibroids in uterus in hindi) हो ही जाती है। कई महिलाओं में जल्दी उम्र में यह समसया हो जाती है जिससे मन में मां बनने की संभावना को लेकर शंका होती है। डॉक्टर मानते है की ज्यादातर महिलाएं इस समस्या से जूझ रही हैं लेकिन इसमें हमेशा इलाज जरुरी नहीं है। कई मामलों में रसौली खुद ठीक होती है और कुछ मामलों में फाइब्रॉइड ट्रीटमेंट या सर्जरी की जरुरत पड़ती है। 

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फाइब्रॉइड के कारण- Causes of Fibroids in Hindi

फाइब्रॉइड होने के कारण की बात करें तो डॉक्टर भी अभी तक इसका पता नहीं लगा सकें। लेकिन कई अध्यानों और शोधकर्ता के मुताबिक इसका कारण

  • जेनेटिक परिवर्तन
  • हर्मोन में बदलाव
  • मोटापा
  • असंतुलित खानपान
  • उम्र का बढ़ना

फाइब्रॉइड के लक्षण- Symptoms of Fibroids in Hindi

गर्भाशय में होने वाले रसौली के इन निम्नलिखित में शामिल हैं-

  • माहवारी के समय या बीच में ज्यादा रक्तस्राव, जिसमे थक्के शामिल हैं।
  • नाभि के नीचे पेट में दर्द या पीठ के निचले हिस्से में दर्द।
  • बार-बार पेशाब आना।
  • मासिक धर्म के समय दर्द की लहर चलना।
  • यौन सम्बन्ध बनाते समय दर्द होना।
  • मासिक धर्म का सामान्य से अधिक दिनों तक चलना।
  • नाभि के नीचे पेट में दबाव या भारीपन महसूस होना।
  • पीठ या पैर में दर्द रहना।

ऐसा माना जाता है कि ज्यादातर मामलों में इसके कोई लक्षण नहीं नजर आते है। हालांकि लक्षण दिखने पर आपको फाइब्रॉइड का इलाज (Fibroid Treament in hindi) या सर्जरी करवाने की जरुरत पड़ सकती है। 

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फाइब्रॉइड ट्रीटमेंट (बच्चेदानी में रसौली) का इलाज और आयुर्वेदिक दवा- Ayurvedic Treatment of Fibroid in Hindi

बच्चेदानी में रसौली को ठीक करने में आयुर्वेदिक दवा व इलाज का अहम महत्व है। गर्भाशय में कई तरह की ग्रंथियां होती हैं। उनमें से यूटेराइन फाइब्रॉयड भी एक है जिसका आयुर्वेद में दवाओं से इलाज संभव है। इसके इलाज के दौरान मरीज में दोष का स्तर को देखा जाता है। मुख्य रूप से वात और कफ दोष कि निगरानी करते है। दोष और लक्षण के आधार पर इलाज को आगे बढ़ाया जाता है। साथ ही इसके लिए चंद्रप्रभा वटी, कंचनार गुग्गुल व हरिद्र खंड जैसी दवाइयों का सेवन करने की सलाह दी जाती है। 

आप जंक फूड से परहेज व लाइफस्टाइल में बदलाव करके भी बच्चेदाने में रसौली को ठीक करने में मदद मिल सकती है। बच्चेदानी में रसौली की आयुर्वेदिक दवा व इलाज के बारे में विस्तार से जानते हैं – 

  • चंद्रप्रभा वटी (Chandraprabha Vati)

यह हर्बल फॉर्मूलेशन महिलाओं के लिए लाभकारी है। जिसमे भा वटी में ड्यूरेटिक गुण होता हैं, जो शरीर में जमा सभी टॉक्सिन को बाहर निकालता है। यूरिनरी ट्रैक्ट में सूजन व सामान्य कमजोरी की स्थिति में भी इसे लेने की सलाह दी जाती है। बच्चेदानी में रसौली और ओवेरियन सिस्ट होने पर इसके सेवन से अच्छे रिजल्ट देखने को मिल सकते हैं। इसके सेवन से महिला को मजबूती मिलती है और उसकी इम्यूनिटी बूस्ट होती है। 

  • कंचनार गुग्गुल (Kanchnar Guggul)

टिशू और ग्लैंड में जमा कफ को बाहर निकालें में मदद करता है। यह थायरॉक्सिन के स्राव को संतुलित करके हाइपर व हाइपो दोनों प्रकार के थायरायड में मदद कर सकता है। यह फॉर्मूलेशन रसौली, ग्लैंड, ट्यूमर, लिपोमा, ओवेरियन सिस्ट व कैंसर को विकसित होने से रोकता है। इसमें कचनार की छाल, अमलाकी, हरीतकी, बिभीतकी, अदरक व गुग्गुल के एक्स्ट्रैक्ट होते हैं, जो हेल्दी सेल्स व टिशू को मैनेज करते हैं। 

  • प्रदरान्तक चूर्ण (Pradrantak choorna)

इस हर्बल फॉर्मूलेशन को लोध्र, अशोक, उडुम्बर और अर्जुन जैसी जड़ी-बूटियों के मिश्रण से तैयार किया गया है। यह आयुर्वेदिक दवा रसौली के साथ-साथ ल्यूकेरिया, प्रीमेंसट्रूअल सिंड्रोम, हार्मोनल असंतुलन, अनियमित ब्लीडिंग, ओवेरियन सिस्ट और डिस्फंक्शनल यूटरिन ब्लीडिंग को ठीक करने में मदद करता है।

  • हरिद्र खंड (Haridra Khand)

हरिद्र खंड को हल्दी, निशोथ, हरड़, दारुहरिद्रा, नागरमोथा, अजमोद व चित्रक मूल जैसी जड़ी-बूटियों के मिश्रण से तैयार किया जाता है। इसमें हल्दी मुख्य तत्व होता है, जिसके एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण की वजह से यह शरीर को डिटॉक्स करने में सहायक है। इसके सेवन से बच्चेदानी में मौजूद रसौली धीरे-धीरे खत्म हो सकती है।

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पाचन क्रिया में करें सुधार

फाइब्रॉइड ट्रीटमेंट के लिए सबसे बेहतर उपचार यह है कि पाचन क्रिया को बेहतर बनाया जाए ताकि शरीर के भीतर मौजूद गंदगी को बाहर निकाल सके। इसलिए आपको आसानी से पचने वाले खानपान जैसे चावल और सब्जियों का अधिक सेवन करना चाहिए। इसके अलावा दोपहर और रात को हल्का खाना चाहिए। साथ ही इन चीजाें के सेवन से बचें-

  • मैदा से दूरी बनाकर रखें।
  • आपकाे उड़द की दाल से परहेज करना चाहिए।
  • खट्टे फल और खट्टे खाद्य पदार्थ से सेवन से भी बचें।
  • बैंगन, आलू जैसी सब्जियाें का सेवन न करें।
  • शराब और धूम्रापन के सेवन से बचे।
  • जंक फूड और प्रोसेस्ड फूड से बचे।

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