रसौली की गांठ, Uterine fibroid

गर्भाशय में रसौली के कारण, लक्षण, इलाज और घरेलू नुस्खे – Uterine Fibroid in Hindi

रसौली एक प्रकार का ट्यूमर है। जो महिलाओं के गर्भाशय में होता है। रसौली का लेकर एक लोगों में एक शंका फैली हुई है। कि रसौली (uterine fibroids) महिलाओं का जननांग कैंसर है। तो यह जानकारी गलत है। क्योंकि Uterine Fibroids नॉन-कैंसर ट्यूमर (uterus Non-Cancerous tumor)  होते हैं। 

मेडिकल में रसौली की इस समस्या को मयोमा या लेयोमायोमा (myoma & leiomyoma) भी कहते हैं। गर्भाशय की रसौली देखने में अनार जितने दाने से लेकर अंगूर के दाने के बराबर हो सकती है। परंतु यदि आपने सही समय पर अगर ध्यान नही दिया तो इसका आकार और भी बढ़ सकता है। डॉक्टर्स का मानना है। कि यदि रसौली की गांठ (Uterine Fibroid) में वृद्धि होती है। तो दर्द में तेजी आने लगती है।

रसौली की वजह से महिलाओं के पेट में दर्द , अनियमित पीरियड्स , कम या ज्यादा ब्लीडिंग जैसे लक्षण देखने को मिलते है। परंतु ऐसा भी नही कह सकते है। कि रसौली से पीडित महिला को केवल यही लक्षण है। कंडीशन के अनुसार लक्षण अलग-अलग हो सकते  हैं। इसके कारणों के जानकारी में डॉक्टरों ने बहुत सारे अध्ययन किए है ।

परंतु कोई सटीक शोध अभी तक सामने नही आ पा रहें है। क्योंकि सभी शोध में कारण भिन्न देखने को मिल रहे है। मौटे तार पर आयुर्वेद के हिसाब से देखा जाये तो इसके लिए लिए जो कारण जिम्मेदार है। वह है आज की लाइफ स्टाइल, डाइट फैक्टर और यौन संक्रमण।

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किन उम्र की महिलाओं में रसौली होने का अधिक खतरा रहता है?

रसौली अक्सर अधिक उम्र की महिलाओं में होती है। परंतु वर्तमान समय में तो टीनएजर्स में भी कई मामले देखने को मिल रहे हैं। डॉक्टर रसौली की समस्या के लिए हार्मोन को जिम्मेदार मानते हैं। इस हार्मोन का नाम एस्ट्रोजन है। जब महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन की कमी होती है। तो उनकी रसौली सिकुडने लगती है।

महिलाओं के गर्भाशय में रसौली हो जाने के बाद यह मिनोपॉज के बाद भी रह सकती है। मोटापे की शिकार महिलाओं को रसौली होने की अधिक संभावना होती है।

क्या प्रेगनेंसी में महिलाओं को रसौली अधिक प्रभावित करती है ?

प्रेगनेंसी के दौरान गर्भवती महिलाओं में किए गये सर्वे से पता चला है। कि 100 गर्भवती महिलाओं में से 25 महिलाओं को रसौली की समस्या थी। रसौली की समस्या डेलिवरी (प्रसव) के दौरान और अधिक बढ़ने की संभावना होती है।  शुरुआती गर्भावस्था में ही महिलाओं में छोटी रसौली हो जाती है। परंतु इसका अनुमान नही लगाया जा सकता है। 

कुछ महिलाओं में तो ऐसी भी केश देखने को मिलते है। जिसमें रसौली की वजह से महिलाएं कंसीव नही कर पाती है। और यदि कंसीव कर लिया तो गर्भपात की अधिक खतरा बना रहता है। ऐसी कंडीशन में डॉक्टर सुझाव देते है। कि आप रसौली ठीक होने के बाद ही गर्भधारण करें।

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गर्भाशय की रसौली कितने प्रकार की होती है ?

महिलाओं के गर्भाशय में होने वाली रसौली को 5 श्रेणियों में रखा गया है।

  1. सबसेरोसाल रसौली – इस प्रकार की रसौली महिला के गर्भाशय की दीवार के बाहर होती है। यह रसौली महिला के मासिक धर्म को अनियमित कर सकता है। पेट और रीढ़ की हड्डी का कारण बन सकता है।
  2. सबम्यूकोसाल रसौली  – सबम्यूकोसाल रसौली गर्भाशय की निचले भाग में होती है। यह शुरुआत में छोटी होती है और बाद में इसका आकार बढ़ जाता है। इस प्रकार की रसौली की वजह से महिलाओं को अधिक ब्लीडिंग का सामना करना पड़ता है।
  3. सर्वाइकल रसौली – इस प्रकार की रसौली गर्भाशय के ऊपरी भाग में होते हैं। ऐसी रसौली पीरियड्स को असामान्य बना देती है और अधिक ब्लीडिंग का भी कारण बनती हैं।
  4. इंट्राम्यूरल रसौली – ये रसौली महिलाओं के गर्भाशय की सतह पर विकसित होते हैं। यह यूटरिन कैविटी (uterine cavity) के बाहरी भाग में फैल जाते हैं। इस तरह की रसौली जब तक आकार में छोटी होती है। तो इसके लक्षण नजर नही आते हैंं। परंतु जैसे-जैसे यह अपना आकार बढ़ाने लगती है। तो यह पेल्विक एरिया और रेक्टम में दर्द का कारण बनते हैं।
  5. पेडुंकुलेटेड रसौली – यह रसौली महिला के गर्भाशय के बाहर विकसित होते हैं। परंतु इसका कुछ भाग गर्भाशय से जुडा होने के कारण इसका प्रभाव सीधा महिला की रीढ़ की हड्डी पर पड़ता है। और महिला की पीठ में दर्द होने लगता है।
महिलाओं में रसौली होने के कारण

रसौली होने के कई कारण हो सकते है। जो महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। प्रेगनेंसी के लिए महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजेन और प्रोस्टेरोन की आवश्यकता होती है। ऐसे में जब यह महिला के शरीर में स्त्रावित होते है। तो रसौली इनका अवशोषण करती है और अपने आकार में वृद्धि कर लेती हैं।

जब महिलाओं में रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) हो जाता है। तो एस्ट्रोजेन और प्रोस्टेरोन में कमी आने लगती है। रजोनिवृत्ति के बाद गर्भाशय का आकार भी सामान्य हो जाता है । जिससे रसौली भी सामान्य हो जाती है। रसौली अनुवांशिक भी होती है। इन सबके अतिरिक्त कम समय में पीरियड्स आना, विटामिन डी की कमी, मोटापा, मांस का अधिक सेवन , शराब का अधिक सेवन इत्यादि रसौली बनने के कारण हैं।

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गर्भाशय में रसौली के लक्षण

रसौली के लक्षण वैसे तो दिखाई नही देते है। परंतु यदि कुछ इस प्रकार के लक्षण दिकाई दें। तो रसौली का अंदाजा लगाय जा सकता है। 

  1. पेल्विक एरिया में तेज दर्द 
  2. पेशाब करने में दर्द 
  3. कभी अधिक पेशाब कभी कम या फिर धीरे धीरे पेशाब जाने की समस्या 
  4. मल का त्याग करते समय तेज दर्द 
गर्भाशय में रसौली का आयुर्वेदिक उपचार और घरेलु नुस्खे

गर्भाशय की रसौली (uterine fibroids ) को आयुर्वेदिक इलाज के द्वारा हमेशा के लिए जड़ से ठीक किया जा सकता है। रसौली के उपचार के लिए पंचकर्म चिकित्सा व उत्तर बस्ती प्रभावी उपचार है। जो जल्दी ठीक करने में मदद करते  हैं। लाइफ में बदलाव और डाइट में सुधार के द्वारा भी रसौली की समस्या को ठीक किया जा सकता है। 

गर्भाशय में रसौली के घरेलु नुस्खे – 

यदि रसौली की समस्या छोटी है तो इसको आप केवल घरेलु नुस्खों के द्वारा नियंत्रित कर सकते हैं। 

  1. आंवला और शहद – आंवला और शहद का तीन महीने तक एक साथ मिलाकर सेवन करने से रसौली की समस्या में राहत मिलती है।
  2. हल्दी- हल्दी के सेवन से शरीर के विशाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते है। जिससे शरीर की शुद्धिकरण हो जाती है। इसकी मदद से बढ़ रही रसौली मे नियंत्रण पा सकते हैं।
  3. लहसुन – सुबह के समय खाली पेट लहसुन खाने से रसौली की समस्या से निजात मिल जाती है।
  4. सेब  का सिरका – सेब के सिरके को गर्म पानी में मिलाकर पीने से रसौली की समस्या दूर होती है। सेब का सिरका पेट की सूजन और दर्द में भी आराम देता है।

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