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फायब्रोइड या रसौली कैसे मातृत्व सुख में बन सकता है रुकावट

प्रजनन उम्र की अधिकांश महिलाओं के गर्भाशय में रसौली (फायब्रोइड) होती है। ऐसे में इन सभी महिलाओं के मन में प्रश्न उठता है। कि यदि गर्भाशय में रसौली हो जाती है तो क्या उनके मातृत्व सुख में रुकावट आ  सकती है? या फिर रसौली होने पर माँ बनने की कितनी संभावना होती है?

महिलाओं के गर्भाशय में फाइब्रॉएड ट्यूमर होते हैं। जो गर्भाशय की दीवारों में या प्रजनन क्षेत्र में विकसित होते हैं।  और यह सामान्य होते है परंतु यह आम तौर पर कैंसर नहीं होते हैं। गर्भाशय में फाइब्रॉएड, प्रसव उम्र की महिलाओ में सबसे आम गैर-कैंसरयुक्त, या सौम्य, ट्यूमर हैं। उन्हें लेयोमायोमा और मायोमा के रूप में भी जाना जाता है। बहुत सी महिलाओं में बिना किसी लक्षण के फाइब्रॉएड होता है।  जबकि अन्य महिलाओं को दर्द, रक्तस्राव या दोनों का अनुभव होता है।

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फर्टिलिटी जगत से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है। कि यदि किसी महिला के गर्भाशय में गांठ या फिर रसौली जैसी कोई समस्या हो जाती है। तो उसको आयुर्वेदिक उपचार के द्वारा ठीक किया जा सकता है। प्रजनन विशेषज्ञ बताते है। कि 20 से 80 प्रतिशत महिलाओं को 50 वर्ष की उम्र तक बच्चेदानी में गांठों की दिक्कत होने लगती है। इसका प्रभाव फर्टिलिटी और गर्भधारण पर पड़ता है। गर्भाशय की रसौली को यूट्राइन फाइब्रॉइड भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त 25 से 45 वर्ष की महिलाओं में 30 प्रतिशत तक फाइब्रॉएड ट्यूमर होने की संभावना होती है। इस दोनों आंकड़ो से यह बात तो स्पष्ट हो जाती है । कि यह प्रजनन समस्या सबसे ज्यादा प्रजनन उम्र में ही देखने को मिलती है। 

फाइब्रॉएड (बच्चेदानी में रसौली) के लक्षण – 

गर्भाशय की रसौली के ऐसे कोई पुख्ता लक्षण नही है। जिसके आधार पर पूर्ण पुष्ठि की जाए की यह गर्भाशय की रसौली ही हैं। परंतु कुछ ऐसे भी लक्षण है जिसके आधार पर फाइब्रॉएड का कभी हद तक पता लगाया जा सकता है। 

मासिक धर्म के दौरान यदि अधिक मात्रा में ब्लीडिंग होती है और तेज दर्द होता है। साथ ही स्पॉटिंग भी देखने को मिलती है। बहुत बार तो ऐसी भी होता है। कि ज्यादा ब्लीडिंग के चलते एनीनिया, अधिक लंबा पीरियड्स, और पेट में तेज दर्द जैसे संकेत मिलते हैं। 

पेट में दबाव होता है और कमर के निचले भाग में भी दर्द की शिकायत होती है। संबंध बनाते समय दर्द होता है। तथा कब्ज, निःसंतानता, गर्भपात, और प्रीटर्म लेवर जैसी परेशानी के साथ-साथ बार-बार पेशान की इच्छा भी होती है। 

गर्भाशय में फाइब्रॉएड होने कैसे होती है प्रेगनेंसी – 

वर्ष 2010 में फाइब्रॉएड से पीडित महिलाओं पर एर रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी । जिसमें से बताया गया था। कि 10 से 30 प्रतिशत महिलाओं को बच्चेदानी में रसौली होने के कारण प्रेगनेंसी के समय बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। और गर्भाशय में रसौली होने पर सबसे ज्यादा दर्द की शिकायत होती है। महिलाओं की दूसरी औ तीसरी गर्भावस्था के दौरान महिलाओं की रसौली की गांठ 5 सेमी. से भी बड़ी हो जाती है। 

प्रजनन विशेषज्ञ बताते है। कि यदि महिलाओं के गर्भाशय में गांठ बन जाती है तो प्रेगनेंसी के दौरान भ्रूण का विकास ठीक प्रकार से नही हो पाता है। क्योंकि गांठ की वजह से बच्चे के विकार से लिए पर्याप्त जगह नही बच पाती है। ऐसे में शिशु का वजन भी नही बढ़ पाता है और विकास भी बाधित हो जाता है। यदि रसौली के द्वारा प्लेसेंटा ब्लॉक होकर गर्भाशय की दीवार से अलग हो जाती है। तो इससे गर्भ में पल रहे बच्चे को जरुरी पोषण और ऑक्सीजन नही मिल पाती है। 

जो महिलाओं रसौली से पीडित है। उनका गर्भाशय दर्द के कारण संकुचित (सिकुड़) जाता है । जिससे जल्दी से डेलीवरी होने की संभावना बन जाती है। ऐसी स्थिति में गर्भपात की 6 प्रतिशत अधिक संभावना हो जाती है। प्रशव के दौरान रसौली के कारण शिशु उल्टा पैदा हो सकता है और साथ ही मिसकैरेज के चांस भी बन जाते है। 

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प्रेगनेंसी के दौरान यदि फाइब्रॉएड हो जाता है तो क्या करें ?

रसौली के केश में ऐसा भी होता है। कि कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के समय पर यदि फाइब्रॉएड हो जाता है । तो वह क्या करें। फर्टिलिटी एक्सपर्ट बताते है। कि ज्यादातर मामलों में प्रेगनेंसी के दौरान रसौली का आकार नही बढ़ता है। परंतु प्रेगनेंसी के फस्ट ट्रीमेस्टर में रसौली के एक हिस्से के बढ़ने की संभावना होती है। रसौली का संबंध महिलाओं में बनने वाले हार्मोन एस्ट्रोजन से होता है। यदि प्रेगनेंसी को दौरान एस्ट्रोजन बढ़ता है। तो रसौली के आकार में भी वृद्धि होती है। 

क्या रसौली होने पर महिलाएं माँ बन सकती है ?

फाइब्रॉएड होने पर भी महिलाएं आयुर्वेदिक नेचुरल तरीके से कंसीव कर सकती है। परंतु गर्भाधारण करने के लिए आयुर्वेदिक इलाज की जरुरत पड़ सकती है। कुछ केश ऐसे भी होते है जिसमें रसौली महिलाओं की फर्टिलिटी को प्रभावित कर सकती है। जैसे कि सबम्यूकोसल फाइब्रॉएड जो एक प्रकार की गांठे होती है। इस तरह की रसौली यूट्राइन कैविटी के भीतर बढ़ती जाती है। ऐसी स्थिति में निःसंतानता और गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। 

फाइब्रॉएड (बच्चेदानी की रसौली) का आयुर्वेदिक इलाज – 

प्रेगनेंसी के दौरान बच्चेदानी के रसौली का इलाज करना एक जोखिम भरा काम होता है। परंतु आयुर्वेद से इसका उपचार किया जा सकता है। आयुर्वेदिक दवाओं के सेवन से फाइब्रॉएड के लक्षणों को कम किया जा सकता है। आयुर्वेद की पंचकर्मा पद्धति प्रजनन से जुड़े सभी प्रकार के विकार को दूर करने के लिए सबसे अच्छी प्रभावी चिकित्सा है। 

आयुर्वेदिक दवाएं दर्द निवारण के साथ-साथ रोग को जड़ से खत्म करने में बहुत ही महत्वपूर्ण है। रसौली के इलाज में आयुर्वेद में गोरखमुंडी, कचनार जड़ी बूटी का प्रयोग इससे छुटकारा दिलाने में किया जाता है। 

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