नपुंसकता, नपुंसकता का आयुर्वेदिक उपचार, Erectile Dysfunction

नपुंसकता का आयुर्वेदिक उपचार – Ayurvedic Treatment for Erectile Dysfunction in Hindi

Erectile Dysfunction – जीवन की भागदौड़ इतनी अधिक बढ़ गई है कि हर कोई आवश्यकता से ज्यादा इस भागदौड़ में व्यस्त है। इस व्यस्त जीवन में अपने आप को समय ही नही दे पा रहा है। किसी के पास इतना भी समय नही है कि वह अपने खानपान तथा लाइफस्टाइल पर ध्यान दे सके।

आयुर्वेद में नपुंसकता को स्तंभन दोष के नाम से जानते है। आम बोलचाल की भाषा में इसे इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (Erectile Dysfunction) कहते है। नपुंसकता का मतलब होता है कि पुरुष संबंध बनाते समय उसके लिंग में उत्तेजना नही होती या फिर ये कहे कि उत्तेजना लाने में वह असमर्थ रहता है।

पुरुषों में नपुंसकता दो प्रकार से होती है। एक तो मानसिक नपुंसकता और दूसरी होती है शारीरिक नपुंसकता।

Erectile Dysfunction (ED) की समस्या से पुरुषों को सेक्स के दौरान इरेक्शन बनाए रखने में कठिनाई होती है। यह एक आम समस्या है, विशेष रूप से 40 वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों में यह समस्या अधिक देखने को मिलती है परंतु कुछ वर्षों से यह कम उम्र के पुरुषों में भी खूब देखने को मिल रही है।

Erectile Dysfunction के उपचार में आयुर्वेद कहता है कि यह एक मनोवैज्ञानिक और शारीरिक चिंताओं का मेल है। Research Trusted Source बताते हैं कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति ईडी के उपचार में लाभकारी  साबित हुई है । आयुर्वेदिक जड़ी बूटी का उपयोग मानसिक स्पष्टता में सुधार और तनाव को कम करने में मदद करता है।

नपुंसकता के लक्षण – Napunsakta ke Lakshan in Hindi

नपुंसकता के कारण, नपुंसकता के लक्षण

नपुंसकता (Erectile Dysfunction) को सरल शब्दों में जानने की कोशिश करते है। जब कोई पुरुष का प्राइवेट पार्ट महिला साथी के साथ संबंध बनाने से पहले शिथिल हो जाता है तो इस स्थिति को नपुंसकता के नाम से जानते है।

कुछ ऐसे लक्षण होते है जो नपुंसकता की जांच में सहायक हो सकते है। नपुंसकता का संबंध जननेन्द्रियों से होता है। नपुंसकता एक ऐसी समस्या होती है जिसको लोग बोलने में हिचकिचाते है। 

  1. संबंध बनाने योग्य न होना इसका मुख्य कारण होता है। 
  2. बहुत ही कम समय के लिए कामोत्तेजना होना या बिल्कुल भी न होना। 
  3. शिशन में पतलापन आना। 
  4. शिशन में तनाव की कमी होना। 

नपुंसकता के कारण – Napunsakta ke Kaaran 

आयुर्वेद के अनुसार नपुंसकता के मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है। शारीरिक नपुंसकता और मानसिक नपुंसकता। मानसिक -नपुंसकता के अंतर्गत अधिक चिंता तथा तनाव युक्त जीवन यदि आप जी रहे है तो आप मानसिक रूप से नपुंसक हो सकते है। इसके अतिरिक्त यदि आप शारीरिक रूप से अधिक परिश्रम के कार्य को अंजाम देते है और साथ ही पौष्टिक भोजन नही करते है तो आप शारीरिक रूप से नपुंसक हो सकते है। 

  1. अधिक कामवासना में लिप्त रहने के कारण भी आप नपुंसक हो सकते है। 
  2. ज्यादा हस्तमैथुन करते है तो भी नपुंसक हो सकते है 
  3. हार्मोन परिवर्तन 
  4. कम शीरिरिक परिश्रम
  5. संतुलित भोजन की कमी
  6. खराब दिन चर्या
  7. अधिक धूम्रपान का सेवन 

नपुंसकता का आयुर्वेदिक उपचार – Ayurvedic Treatment for Erectile Dysfunction 

आयुर्वेदिक उपचार से पुरुषों में होने वाली नपुंसकता की बीमारी जल्द ठीक हो जाती है। आयुर्वेद के अनुसार यदि आप कुछ बातों का ध्यान रखते है। आयुर्वेद में औषधियों के सेवन के साथ-साथ इसके नियमों का पालन करना बहुत ही जरूरी होता है। आयुर्वेद सबसे ज्यादा जोर आहार-विहार तथा दिनचर्या पर देता है। 

यदि आप नपुंसकता की भेट चढ़ गये है तो आपको अपने भोजन में पौष्टिक खाद्य पदार्थों को शामिल करना चाहिए। इन खाद्य पदार्थों के सेवन से अपने शरीर में पोषक तत्वों की कमी पूरी हो जायेगी और आपके शरीर से नपुंसकता दूर हो जायेगी।

कुछ ऐसे फल है जिसके नियमित सेवन से आपकी प्रजनन शक्ति दुबारा बहाल हो जायेगी और आप प्रजनन के योग्य बन जाएंगे। अश्लील वातावरण एवं अश्लील फिल्मों को देखने से बचने की कोशिश करना चाहिए क्योंकि ऐसे माहौल के कारण आप और अधिक इस समस्या से ग्रसित हो चले जायेंगे। 

नपुंसकता की आयुर्वेदिक दवा – Ayurvedic Medicine for Erectile Dysfunction

कैसिया दालचीनी – कैसिया दालचीनी  एक प्रकार का दालचीनी है जो एक सदाबहार पेड़ की छाल से निकाला जाता है जो भारत के क्षेत्रों में उगता है। कैसिया दालचीनी यौन क्रिया को बेहतर बनाने के लिए सबसे अच्छा माना गया है।

वियाग्रा जैसी सिंथेटिक दवाओं की तुलना आयुर्वेदिक दवाएं ज्यादा असरकारक है। आयुर्वेदिक दवाओं का यदि आप कुछ दिनों तक सेवन करते है तो इसका कोई भी साइड इफेक्ट नही है।

गोक्षुरा चूर्ण – गोक्षुरा चूर्ण का पुरुषों के यौन स्वास्थ्य में सुधार पर आश्चर्यजनक प्रभाव  लाता है। गोक्षुर चूर्ण में शक्तिशाली शुक्राणुजन गुण होते हैं जो हाइपोस्पर्मिया (वीर्य की कम मात्रा), स्टेनोस्पर्मिया (यानी शुक्राणु गतिशीलता), ओलिगोस्पर्मिया (यानी कम शुक्राणु संख्या) के उपचार में उच्च महत्व रखते हैं, और शुक्राणु जनन (यानी शुक्राणु उत्पादन) को बढ़ाते हैं।

एक प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट होने के नाते, यह टेस्टोस्टेरोन के उत्पादन में सुधार करता है और स्तंभन दोष और शीघ्रपतन जैसी स्थितियों का इलाज करने में मदद करता है।

तुलसी के बीज – तुलसी, जिसे ‘पवित्र तुलसी’ के रूप में भी जाना जाता है। यह तुलसी  युगों से हमारे साथ है। इसके कई औषधीय गुणों है और यह कई रोगों को ठीक करने में प्रयोग की जाती है। तुलसी  पुरुष नपुंसकता के इलाज में बेहद फायदेमंद है।

तुलसी के बीज जब नियमित रूप से लिये जाते है तो शिश्न के ऊतकों (penile tissue) में रक्त का प्रवाह और ताकत बढ़ जाती है। यह कामेच्छा और सामान्य दुर्बलता को दूर करती और समग्र सहनशक्ति में सुधार करने के लिए भी फायदेमंद है।

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