जन्माष्टमी और मातृत्व का सुख

जन्माष्टमी और मातृत्व का सुख

इस ब्लॉग में आज हम पढ़ेंगे की जन्माष्टमी और मातृत्व का सुख : – मातृत्व का अहसास और माँ का प्यार हमारे जीवन का सबसे अनमोल हिस्सा है। यह वो रिश्ता है जिसमें सबसे गहरा संबंध होता है और जन्माष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के अवसर पर मातृत्व का महत्वपूर्ण संदेश लेकर आता है। मां बनने की इच्छा हर महिला की होती है लेकिन किसी कारणवश से इस खुशी से वंचित रहती है। मां बनना हर महिला का सपना होता है।

प्रेग्नेंसी के वो उन 9 महीनों का अनुभव करना, हर दिन बच्चे के बारे में नए सपने बुनना। लेकिन महिला इंफर्टिलिटी (बांझपन) से यह सपना टूट जाता है। और इस समस्या से एक या दो नहीं बल्कि कई महिलाएं इस परेशानी से जुझती है। इस लेख में, हम जन्माष्टमी और मातृत्व के सुख के बारे में चर्चा करेंगे।

ऐसा माना जाता है कि कृष्ण जन्माष्टमी (जन्माष्टमी और मातृत्व का सुख) के दिन पर माता देवकी के माँ बनने पर गोकुल नगरी खुशियों से भर गयी थी। आज के समय में माता देवकी की तरह हर महिला मां बनना चाहती है लेकिन किसी कारणवश से संतान सुख से दूर रह जाती है। निसंतानता एक समस्या है जिससे कई युगों से गुजर रहे जोड़ों का सामना हो रहा है। यह एक भावनात्मक और दैहिक समस्या होती है, जिससे जीवन के सपनों का पूरा होना सम्भव नहीं होता है। 

हालाँकि यह समस्या पुरुषों में भी पाई जाती है, लेकिन इस समस्या के कारण महिलाओं को कितनी मानसिक यातना झेलनी पड़ती है, इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। महिलाओं में इनफर्टिलिटी यानी निःसंतानता एक ऐसी समस्या है जिसमें शारीरिक दर्द से ज्यादा मानसिक तनाव महिला को झकझोर देता है।

आशा आयुर्वेदा की डॉ. चंचल शर्मा बताती हैं कि महिलाओं में यह समस्या मुख्यतः इन कारणों के चलते होती है, जैसे कि फैलोपियन ट्यूब का बंद होना, फैलोपियन ट्यूब में पानी भरना, एंडोमेट्रिओसिस का होना, गर्भाशय में गांठ या रसौली, गर्भाशय में टीबी होना, अंडे की गुणवत्ता में गिरावट, अंडे का नहीं बनना, पीसीओएस, पीसीओडी, ल्यूकोरिया, डायबीटीज, अनीमिया, मोटापा आदि शामिल हैं। 

जन्माष्टमी और मातृत्व का संबंध

निसंतानता का बोझ बहुत सारे जोड़ों के ऊपर होता है, जिन्होंने अपने जीवन में एक संतान की कमी का सामना किया है। इसके साथ ही, समाज में ऐसी तानाशाही होती है कि निसंतानता वाले जोड़ों के ऊपर आलोचना और दबाव बढ़ जाता है। इसके चलते निसंतानता से गुजर रहे जोड़े अकेलापन और दुख का सामना करते हैं, और वे अक्सर निराश हो जाते हैं। इस समस्या के साथ निसंतानता वाले Couples के लिए संतान प्राप्ति की आशा होती है, और वे अपनी आखिरी आशा को भगवान के प्रति समर्पित करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी के मौके पर निसंतानता से आशा की ओर बढ़ती मां बनने की खुशी और आशा की अद्भुत कहानी है, जो धैर्य, आत्मविश्वास, और आस्था की मिसाल प्रस्तुत करती है।

वैसे ही आयुर्वेद में निसंतानता का इलाज संभव है जोकि प्रचीन समय से चला आ रहा है। निसंतानता एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्या है जिससे कई जोड़ों का सामना करना पड़ता है। यह समस्या जीवन के एक महत्वपूर्ण पहलू को प्रभावित कर सकती है और व्यक्ति को अत्यधिक तनाव में डाल सकती है। इसलिए निसंतानता का समाधान खोजने के लिए विभिन्न तरीकों की तलाश की जाती है, और एक तरीका है पंचकर्मा। पंचकर्मा एक प्रमुख आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली है जिसका उपयोग निसंतानता के इलाज में किया जा सकता है। इस लेख में, हम पंचकर्मा से निसंतानता का इलाज की प्रक्रिया पर विचार करेंगे।

पंचकर्मा क्या है?

पंचकर्मा एक प्रमुख आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली है जिसका उपयोग भारतीय पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है। इस प्रणाली में शरीर के विषैले पदार्थों को निकालने और प्रशस्त करने के लिए पांच मुख्य प्रक्रियाएं होती हैं, जो हैं:

  • वमन (Vaman): इसमें विशिष्ट दवाइयों का सेवन करके उल्टी करवाई जाती है जिससे पेट के विषैले पदार्थ उल्कित होकर बाहर आते हैं। यह प्रक्रिया जलन, उल्कापन, और कफ के विषैले पदार्थों को निकालने में मदद करती है।
  • विरेचन (Virechan): इसमें शरीर को जड़ी-बूटियों का सेवन करवा के मल के माध्यम से विषैले पदार्थ निकाले जाते हैं। यह प्रक्रिया पित्त, विषैले पदार्थ, और बाहरी तकलीफों को कम करने में मदद करती है।
  • उत्तर बस्ती (Basti): इसमें कैथियर की मदद से माध्यम से दवाइयों का सेवन करने के साथ योनि के माध्यम से शरीर के अंदरीकरण की शुद्धि की जाती है। यह प्रक्रिया गर्भाशय और प्रजनन तंतु को स्वस्थ बनाने में मदद करती है।
  • नस्या (Nasya): इसमें नाक के माध्यम से शरीर में औषधि की बूंदे डाली जाती हैं, जिससे ब्रह्मरंड्र के शुद्धि की जाती है और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारा जाता है।
  • रक्तमोक्षण (Raktamokshan): इसमें रक्त को खून के संवाहना के माध्यम से निकाला जाता है। यह प्रक्रिया रक्त के विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में मदद करती है।

पंचकर्मा और निसंतानता का इलाज

पंचकर्मा का उपयोग निसंतानता के इलाज के लिए किया जा सकता है, खासकर जब निसंतानता की समस्या आयुर्वेदिक दृष्टि से विकृति या दोषों के कारण होती है। पंचकर्मा निम्नलिखित तरीकों से निसंतानता के इलाज में मदद कर सकता है:

  • विषहरण (Detoxification): पंचकर्मा द्वारा विषहरण का काम करने से शरीर में जमे विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद मिलती है। यह शरीर को शुद्ध करके स्वस्थ और संतुलित होने में मदद करता है, जिससे गर्भाशय का स्वस्थ और उपयोगी होने की संभावना बढ़ती है।
  • पोषण (Nourishment): पंचकर्मा व्यक्ति को स्वस्थ आहार और जीवनशैली का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे उनका सामग्री और जीवनशैली में सुधार हो सकता है।
  • प्रजनन स्त्री की शुद्धि (Fertility Enhancement): पंचकर्मा द्वारा नास्य और बस्ति की प्रक्रियाएँ किए जा सकते हैं, जो गर्भाशय को शुद्ध करने और प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में मदद कर सकती हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य का सुधारणा (Emotional Well-being): पंचकर्मा द्वारा नस्या की प्रक्रिया किया जा सकता है, जो मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद कर सकती है। यह मानसिक तनाव और चिंता को कम करके संजीवनी शक्ति और सकारात्मकता को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
  • हार्मोनल बैलेंस (Hormonal Balance): पंचकर्मा के द्वारा रक्तमोक्षण की प्रक्रिया किया जा सकता है, जिससे हार्मोनल बैलेंस को सुधारने में मदद मिल सकती है। हार्मोनल असंतुलन निसंतानता का एक सामान्य कारण हो सकता है, और पंचकर्मा इसका समाधान प्रदान कर सकता है।
इस लेख की जानकारी डॉ. चंचल शर्मा द्वारा दी गई है। अगर आपको लेख पंसद आए तो हमें कमेंट करके जरुर बताए। और फिर निसंतानता की समस्या से परेशान है तो हमारे Dr Chanchal Sharma की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाए या हमसे +91 9811773770 संपर्क करें।

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