PCOS

क्यों होती है पीसीओडी की समस्या?

भागदौड़ भारी जिन्दगी में लोगों के पास तो अब इतना भी समय नही बचा है कि चैन से खाना खा लें। हर के लिए सेहत का ख्याल रखना बहुत जरुरी होता है महिला या फिर पुरुष । हर किसी को समय पर खाना और खाना अच्छी दिन चर्या के प्रमुख नियम बतायें गये है परंतु आज कल तो सारे नियम धरे के धरे रह जाते है । ऐसे में महिलाओं की लाइफ स्टाइल तो इतनी ज्यादा प्रभावित होती है कि उनको न अपने स्वास्थ्य का ख्याल रह जाता है और न ही खानेपीने का । महिलाओं बच्चों और घर के कामों में इतनी अधिक व्यस्त हो जाती है कि खुद को बिल्कुल समय नही दे पाती है ऐसे में स्वास्थ्य समस्या होना एक सामान्य सी बात हो जाती है। 

इस बात का महिलाओं को जरा सा भी ख्याल नही रहता है कि ऐसा करने से उनके स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पडेगा। खराब जीवनशैली की कारण महिलाओं कई सारी बीमारियों को एक साथ न्यौता दे देतीहै। एक ऐसी ही बीमारी है पीसीओएस जो पहले कभी महिलाओं के देर से शादी (35-40)  के कारण होती थी परंतु अब तो 12 वर्ष से लेकर 19 वर्ष तक की लड़कियों अधिकांश देखने को मिल रही है। 

प्रजनन आयु में महिलाओं की बढ़ती संख्या पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) नामक एक हार्मोनल विकार से पीड़ित है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ चंचल शर्मा का कहना है कि इस स्थिति के बारे में अधिक जागरूकता की आवश्यकता है । जीवन भर चलते वाली इस बीमारी को उचित आहार और जीवन शैली द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।

अनुमानित आंकड़ो के अनुसार हर 10 में से   2 भारतीय महिला पीसीओएस की बीमारी  से पीड़ित है। यदि समय पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह पीसीओएस स्वास्थ्य गंभीर  प्रभाव डाल सकती है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ चंचल शर्मा जो आशा आयुर्वेदा की संस्थापक वह कहती है कि पीसीओएस कोई बीमारी नहीं है, बल्कि एक ऐसी स्थिति है जो खुद को अलग-अलग तरीकों से पेश कर सकती है। “जबकि छोटी महिलाएं अनियमित पीरियड्स से पीड़ित हो सकती हैं, हिर्सुटिज़्म (अवांछित पुरुष-पैटर्न बाल विकास) और मोटापे का अनुभव कर सकती हैं, थोड़े बड़े आयु वर्ग में, इससे बांझपन, गर्भपात का खतरा और बहुत कुछ हो सकता है। पीसीओएस होने पर  गर्भ धारण करना मुश्किल हो जाता है।  यदि किसी महिला को पीसीओडी या पीसीओएस हो जाता है तो आने वाली संतान में लगभग 40% संभावना होती है कि उसे भी यह बीमारी होने की शंका होती है। 

 

पीसीओएस होने पर किन-किन बीमारियों का होता है खतरा जानें – 

पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में मधुमेह, उच्च रक्तचाप और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के विकसित होने का अधिक जोखिम होता है। आशा आयुर्वेदा की  स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. चंचल शर्मा कहती है कि जिन महिलाओं को जितनी अधिक मोटापे की समस्या है उसमें उतना ही  अधिक हार्मोनल असंतुलन होता है। एक आदर्श बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 25 है, लेकिन जब कोई महिला मोटी होती है , तो बीएमआई 27-28 से अधिक हो जाता है और यह खतरनाक हो जाता है। “पीसीओएस एक आजीवन स्वास्थ्य स्थिति है, लेकिन उचित आहार और आदर्श शरीर के वजन के साथ इसे नियंत्रित किया जा सकता है” । कम कार्बोहाइड्रेट, उच्च प्रोटीन और दैनिक शारीरिक व्यायाम वाले आहार पर जोर देकर इस समस्या से निजात पाई जाती है। 

डॉ चंचल शर्मा का मत है कि ज्यादातर महिलाएं पीसीओएस के सामान्य लक्षणों को नजरअंदाज कर देती हैं और गर्भधारण करने में परेशानी होने पर ही डॉक्टर के पास जाती हैं। इस स्थिति की घटना हर साल बढ़ रही है, फिर भी कई महिलाएं यह नहीं सोचती हैं कि लक्षण दिखाई देने पर भी यह पीसीओएस हो सकता है। “वे बस इसे जीवनशैली के लिए जिम्मेदार ठहराती हैं। पीसीओएस खराब जीवनशैली की आदतों से उत्पन्न होता है लेकिन इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और इसका इलाज किया जाना चाहिए। चूंकि यह जीवन के लिए खतरा नहीं है, इसलिए लोग इसकी पर्याप्त परवाह नहीं करते हैं, ऐसा अधिकांश महिलाओं का मानना होता है। 

मोटापे से पीड़ित महिलाओं में पीसीओएस आम है। लगभग 80% पीसीओएस से पीडित महिलाएं मोटापे से ग्रस्त हैं ।  शहरी भारतीय महिलाओं को उनकी खराब जीवनशैली, खाने की आदतों और शारीरिक गतिविधि की कमी के कारण अधिक जोखिम हो सकता है। 

(ये भी पढ़े –कैसे पहचाने पीसीओडी के लक्षण – SYMPTOMS OF PCOD/PCOS)

 

पीसीओएस के लक्षण (pcos ks lakshan in Hindi ) – 

  1. ओव्यूलेशन की कमी के कारण अनियमित माहवारी होना। 
  2. मेल हार्मोन के उच्च स्तर के कारण चेहरे पर अतिरिक्त बाल होना , मुँहासे, सिर के बालों का पतला होना। 
  3. अंडाशय पर कई छोटे अल्सर होना। 
  4. अस्वास्थ्यकर आहार और शारीरिक व्यायाम की कमी के कारण मोटापा (अधिक वजन)
  5. जेनेटिक प्रोब्लम –  जिन महिलाओं की मां या बहन को पीसीओएस या टाइप 2 मधुमेह है, उनमें पीसीओएस विकसित होने की संभावना अधिक होती है । 
  6. दर्दनाक माहवारी
  7. मधुमेह, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, स्ट्रोक एवं पाचन संबंधी समस्याएं होना। 
  8. नींद की समस्या और मूड़ खराब होना । 
  9. गर्भाशय में कैंसर होना । 
  10. चिंता और तनाव होना । 

 

पीसीओएस आखिर है क्या और इसे कैसे रोका जा सकता है ?

जब महिाओं की ओवरी में पुरुष होर्मोन (Androgen) का स्तर बढ़ ता है तो ओवरी में एक से अधिक सिस्ट बनने लगते है। जो एक प्रकार का ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) प्रजनन महिलाओं में एक हार्मोनल विकार है। बांझपन के साथ होने वाली महिलाओं में यह एक आम समस्या है। पीसीओएस एक सिंड्रोम है, बीमारी नहीं। यह एक आजीवन स्थिति है जो बच्चे के जन्म बाद भी कई वर्षों तक हो सकती है। 

इस दूर करने के लिए सबसे पहले अपनी जीवनशैली में परिवर्तन और खानपान में सुधार करने की सबसे ज्यादा जरुरत होती है। इन सबके साथ-साथ आयुर्वेदिक उपचार और योग का सहारा लेकर भी इससे जल्द समाप्त किया जा सकता है। 

  1. यदि आपको कोई लक्षण दिखाई दें, विशेष रूप से अनियमित मासिक धर्म, तो स्त्री रोग विशेषज्ञ से  जरुर मिलें । 
  2. अगर आपको पीसीओएस है, तो डॉक्टर से मिलकर नेचुरल उपचार की सिफारिस करें। 
  3.  वजन कम करें अगर मोटापे के कारण  पीसीओएस है। 
  4.  संतुलित, कम कार्बोहाइड्रेट, उच्च प्रोटीन वाला आहार लें। 
  5.  शारीरिक गतिविधि बढ़ाएँ । 
  6. डॉक्टर ओव्यूलेशन में मदद करने, मुंहासों को कम करने, बालों के विकास और अन्य लक्षणों में मदद करने के लिए नेचुरल दवा लिख ​​सकते हैं ।

(ये भी पढ़े – डॉ चंचल शर्मा से जानिए PCOS / PCOD को आयुर्वेदिक उपचार से कैसे ठीक करें  )